सौरभ शर्मा, जो कभी मध्य प्रदेश शासन के परिवहन विभाग में कार्यरत थे, ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (VRS) नहीं ली थी। इसके बजाय, उन्हें परिवहन विभाग से अनिवार्य सेवा निवृत्ति दी गई थी, ताकि वह विभाग के काले धन के संचालन को संभाल सकें। यह खुलासा आयकर विभाग को मिली एक डायरी से हुआ है, जिसमें सौरभ शर्मा की भूमिका का स्पष्ट विवरण दिया गया है। इस डायरी में 52 जिलों के अधिकारियों के नाम, संपर्क सूत्र, और वित्तीय लेनदेन के ब्योरे दर्ज हैं। इससे यह साबित हुआ कि सौरभ शर्मा VRS के बाद भी सक्रिय रूप से परिवहन विभाग के लिए कार्यरत थे और उनका मुख्य काम काले धन के लेन-देन को संभालना था।
मंत्री और परिवहन आयुक्त की सेवा में सौरभ शर्मा की भूमिका
VRS लेने के बाद, सौरभ शर्मा ने परिवहन मंत्री और आयुक्त के लिए काम करना शुरू कर दिया। इस दौरान, वह विभाग के सभी काले धन के लेन-देन का प्रबंधन करते रहे। आयकर विभाग को प्राप्त डायरी में यह भी दर्ज है कि सौरभ शर्मा ने किस तरह से विभिन्न जिलों में अपने संपर्कों का उपयोग किया और काले धन को सुरक्षित रूप से एकत्रित और वितरित किया।
इस तथ्य से यह स्पष्ट होता है कि उनकी भूमिका केवल विभागीय कर्मचारी तक सीमित नहीं थी, बल्कि वह एक बड़े नेटवर्क का हिस्सा थे, जो भ्रष्टाचार और अवैध धन के लेन-देन को संचालित करता था।
भोपाल पुलिस और इनोवा में छिपा 50 करोड़ का रहस्य
आयकर विभाग की छापेमारी और इनोवा कार का मामला
मेंडोरी क्षेत्र में खड़ी एक इनोवा गाड़ी में 50 करोड़ रुपये मूल्य के स्वर्ण और नगदी होने की जानकारी आयकर विभाग को एक अज्ञात स्रोत से प्राप्त हुई। जब अधिकारी मौके पर पहुंचे, तो उन्होंने देखा कि कुछ पुलिसकर्मी गाड़ी की सुरक्षा में तैनात थे। यह तथ्य चौंकाने वाला था, क्योंकि पुलिस ने वाहन की जांच करने से इनकार कर दिया।
इसके बाद, आयकर अधिकारियों ने थाना प्रभारी (TI) से लिखित अनुमति प्राप्त की और गाड़ी की पूरी जांच की। इस दौरान यह स्पष्ट हुआ कि यह मामला एक सुनियोजित साजिश का हिस्सा था। पुलिसकर्मियों की मौजूदगी और उनकी निष्क्रियता यह दर्शाती है कि स्वर्ण और नगदी को सुरक्षित रखने के लिए पहले से ही पूरी योजना बनाई गई थी।
पुलिस की भूमिका पर सवाल
गुरुवार शाम 4 बजे पुलिस को लावारिस गाड़ी की सूचना मिली थी। हालांकि, रात 11 बजे तक पुलिस ने कोई ठोस कार्रवाई नहीं की। जब आयकर विभाग की टीम वहां पहुंची, तो उन्होंने पाया कि 7-8 पुलिसकर्मी मौके पर मौजूद थे। लेकिन धीरे-धीरे वे वहां से चले गए और अंत में एक हेड कांस्टेबल ही वहां रह गया।
जब कार्रवाई को लेकर विवाद हुआ, तो पुलिस अधिकारी ने लिखित में यह बयान दिया कि वे कोई कार्रवाई नहीं करेंगे। इस प्रकार, यह मामला भ्रष्टाचार और काले धन के नेटवर्क में पुलिस की मिलीभगत को उजागर करता है।
Also Read
Leave a Comment